मधेपुरा के लोक देवता बाबा विशु राउत चौदह अप्रैल से सत्रह अप्रैल तक चार दिवसीय राजकीय मेला का आयोजन

मधेपुरा के लोक देवता बाबा विशु राउत चौदह अप्रैल से सत्रह अप्रैल तक चार दिवसीय राजकीय मेला का आयोजन

मधेपुरा के लोक देवता बाबा विशु राउत मधेपुरा जिला के उदा किशुनगंज अनुमंडल के अंतर्गत चौसा प्रखंड मुख्यालय से आठ किलोमीटर दक्षिण में लौआ लगान पूर्वी पंचायत के पचरासी स्थल पर भव्य मंदिर है।

बाबा विशु राउत धाम के पास  अपनी निजी लगभग नो एकड़ जमीन है। 

लगभग चार सौ पच्चीस वर्षों से प्रत्येक वर्ष मेष सतवा संक्रांति के अवसर पर चौदह अप्रैल से सत्रह अप्रैल तक चार दिवसीय विभिन्न राज्यों एवं जिलों से आए हुए पशुपालक भक्तों द्वारा बाबा विशु राउत की प्रतिमा पर अपने पशुओं के दूध से बाबा विशु राउत के प्रतिमा को दुग्धाभिषेक किया जाता है। 

इसके अतिरिक्त सालों भर प्रत्येक सोमवार एवं शुक्रवार को पशुपालकों द्वारा अपने पशुओं के दूध से बाबा विशु राउत के प्रतिमा को दुग्धाभिषेक किया जाता है जो बैरागन मेला के नाम से प्रसिद्ध है। 

वार्षिक महोत्सव में प्रत्येक दिन कम से कम एक लाख पशुपालक तथा बैरागन मेला में कम से कम पाँच हजार पशुपालकों द्वारा स्वयं गाय एवं भैंस के कच्चा दूध का दुगधाभिषेक किया जाता है। 

इस वर्ष भी पिछले वर्ष के भाँति चौदह अप्रैल से सत्रह अप्रैल तक चार दिवसीय राजकीय मेला का आयोजन किया गया।

बाबा विशु राउत के संबंध में प्रचलित किवंदंतियों के अनुसार मुगल बादशाह रंगीला के सत्रह सौ उन्नीस  इश्वी के  समकालीन बाबा विशु राउत भागलपुर जिले के सबौर गांव में बालाजीत गोप के तीन पुत्रों में से एक थे।

इनका विवाह तेरह  वर्ष की आयु में नवगछिया के सिमरा गांव की रहने वाली रूपवती नामक कन्या से हुई। 

पिता के निधन के बाद तथा चैत्र माह में चारा के अभाव में बाबा विशु राउत को अपनी पांच रास गाय के साथ सबौर से गंगा पार कर चौसा के लौआ लगान के बीच बीजन वन में बथान स्थापित करने का संयोग प्राप्त हुआ। 

किवंदंतियों के अनुसार पांच रास गाय की संख्या बढ़कर नव्वे लाख हो गई।

सभी गायों की जिम्मेदारी अपने छोटे भाई अवधा एवं चरवाहा नन्हुवा के ऊपर छोड़कर बाबा विशु रावत गौना के लिए अपने घर सबौर चले गए थे। 

घाघरी नदी के जल पर अधिकार रखने वाले बाबा विशु राउत के मित्र मोहन गोढ़ी ने इसकी अनुपस्थिति में भाई अवधा एवं चरवाहा नन्हुवा को मेष सतुआ संक्रांति के अवसर पर जबरदस्ती दूध लेने का प्रयास किया। 

इन्कार करने पर सभी गायों के बछडों को खूंटा में बांध दिया तथा बछडों को दूध पिलाने से वंचित रखने के लिए गायों को अलग खूंटे से बांध दिया। 

बछडों एवं गायों की दुर्दशा तथा अवधा एवं नन्हुवा की विवशता देखकर माँ गहैली ने बाबा विशु को स्वप्न दिया तदोपरांत वे गाँव में अपनी पत्नी को छोड़कर बीजन बन (पचरासी स्थान ) वापस आ गए।

गहैली माता के दैविक चमत्कार से गाय एवं बछडे स्वस्थ हो गए एवं खुले में चरने लगे। 

गाय एवं बछडों को स्वस्थ एवं खुले में चरते देख मोहन गोढ़ी क्रोधित हो गया तथा उसके एवं चरवाहा नन्हुवा के बीच मारपीट की घटना घटी, जिसमें वह घायल हो गया। 

घायल पुत्र मोहन गोढ़ी को देखकर बहुरा योगिन अपने पुत्र का बदला लेने के लिए जादू से एक बाघ को बाबा विशु की हत्या करने हेतु भेजा। 

बाबा विशु निद्रा अवस्था में थे।बाघ से बाबा विशु को बचाने हेतु करुणा नामक धाकड़ बाघ से लड़ते हुए बाबा के सुरक्षा में जान दे दिया।
 निद्रा से जागने के बाद बाबा विशु राउत ने उस बाघ को मार दिया तथा घघरी नदी में फेंक दिया। 

बहुरा योगिन बाघ की मृत्यु के बाद उसकी विधवा बाघिन को पुनः बाबा विशु राउत की हत्या करने हेतु भेजा। 

चूँकि बाबा विशु राउत स्त्री जाति का सम्मान करते थे इसलिए बाघिन को बगैर क्षति किए उत्तर दक्षिण दिशा में लेट कर कुल देवी गहैली माता का स्मरण कर अपने प्राण त्याग दिए। 

बाबा विशु राउत की मृत्यु की सूचना मिलते हीं नौ लाख गए पार्थिव शरीर को घेर कर अपने स्तनों से दूध की अविरल धार बहा कर घघरी नदी के धार में पार्थिव शरीर को विलीन कर दिया। 

तब ग्रामीणों एवं चरवाहों ने मिलकर बीजन बन में मंदिर का निर्माण किया जो बाबा विशु राउत पचरासी स्थल धाम के नाम से जाना जाता है।

जिला प्रशासन मधेपुरा की अनुशंसा के आलोक में भूमि सुधार विभाग ने  बारह  मार्च दो हजार अठारह को बिहार सरकार ने इसे राजकीय मेला घोषित किया। 

राजकीय मेला घोषित होने के बाद चौथा महोत्सव जिला प्रशासन एवं बाबा विशु राउत मंदिर समिति के द्वारा भव्यता के साथ मनाया जा रहा है 

बाबा विशु रावत के नाम पर बिहार सरकार द्वारा कोसी नदी पर विशाल सेतु एवं बाबा विशु राउत महाविद्यालय भी स्थापित है तथा इस धाम को जोड़ने हेतु पक्की सड़क का भी निर्माण किया गया है।